अहिंसा या प्रेम
गांधीजी का मानना था की
किसी प्राणी को चोट न पहुचाना अंहिसाके एक छोटा चिह्न है। जब कोइ या हर बुरे
विचारसे, अनुचित जल्दवाजीसे, झुठ बोलनेसे, घृणासे और किचीका बुरा चाहने से भी
अहिंसा सिद्धान्त भंग होता है। अहिंसाके बिना खोज और प्राप्ति असंभव है। अहिंसा एक
साधन है और सत्य एक साधा। साधन तभी साधन है जब के पहुचके भातिर हो, और इसलिए
अहिंसा हमारा सवोपरि कर्तव्य है। जब अहिंसाको हम जीवन का सिद्धान्त मान लेते है,
तो वह हमारे सारे जीवन में व्याप्त ही जानी चाहिये। केवल विशेष मोको पर ही असका
उपयोग नही होना चाहिये। यह मानना गहरी भुल है कि अहिंसा केवल व्यक्तियो के लिए ही
अच्छी है, और जनसमुहके लिए नही।
पैगम्बरों और अवतारों ने
भी थोड़ा बहुत अहिंसा का ही पाठ पढ़ाया है। उनम से एकने भी हिंसाकी शिक्षा देनेका
दावा नही किया। और करे भी कैसे? हिंसा सिखानी नही पड़ती। पशुके नाते मनष्य हिंसक है और
आत्माके रुपमें अहिंसक है। जब मनुष्यको आत्माकी भान हो जाता है, तब वह हिंसक रह ही
नहीं सकता। या तो वह अहिंसाकी और बढ़ता है या अपने विनाशकी औऱ दौड़ता है।
आज के समय में पुरी
दुनिया के लिए जीने का जरीया है अहिंसा के मार्ग। ये जो हिंसा का बिमारी फेला हुआ
है उसी से ही आज दुनिया का सन्तुलन बिगरा है। जीस तरह भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध
हो रहा है तो किसके लिए अच्छा होगा? मानव जाति के लिए तो बिलकुल ही नही हो सकता। किसी को जीतना
हो तो अपना शक्ति या हिंसा के जरीये से अच्छा प्रेम से जीतकर दिखोओ ना। मैं तो
भारत-पाकिस्तान के लडाई के खिलाफ हुँ। क्युकि हिंसा से हिंसा ही बड़ता है शान्ति
नही। चायद मोदि जीने गरीब, भुखमरी, बेकारी आदि के खिलाफ लड़ाई की बात कि है। इसमे
मैं जरुर चेहमत हुँ। आज भी इसका का ज्यादा जरुरत हर देश को है। हम सभी हिंसा से
मुक्त शान्ति से जीना चाहते है जो केवल अहिंसा के माध्यम से ही पुरा हो चाकता है।
आज जाती पिता महात्मा
गान्धी जी के जन्म दिन पर हर एक नागरीक अहिंसा के जरीये एक खुसहाल और शान्तिप्रिय
जीवन स्थापन करने के लिए आगे आए। ताकि गान्धी जी का सपने को पुरा कर सके।
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